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दीवाली भारत मे मनाये जाने वाला सबसे बड़ा त्योवहार है। दीवाली हिन्दू धर्म का त्योहार है। इस त्योवहार को भारत के लगभग सभी राज्यो में बड़े धूम धाम से मनाया जाता है। यह त्योवहार दशहरा के ठीक 20 दिन बाद आता है। यह हर साल अक्टूबर या नवंबर में आता है। ऐसा मानना है कि भगवान राम के वनवास से घर लौटने की खुशी को दीवाली के रूप में मनाया जाता है। भगवान राम वनवास से 14 साल बाद वापस घर आये थे। भगवान राम ने रावण का वध किया किया था। जिस दिन रावण का वध हुवा था उस दिन को दशहरा के रूप में मनाया जाता है। वध के ठीक 20 दिन बाद भगवान राम अपने घर लौट आये उसी दिन भगवान राम के स्वागत में दीपक और अन्य प्रकार के प्रकाश से घरो को सजाया गया। ठीक वैसे ही आज भी हम अपने घरो को दिवाली से पहले सजाते हैं ।
मानो भगवान राम फिर से वनवास से घर लौट रहे है। दीवाली पर सभी नए कपड़े पहनते है। घरो में मिठाई बनाई जाती है। मिठाई और नए कपड़े गरीबो में बांटा जाता है। गरीब जो नये कपड़े और मिठाई पैसो से नही ख़रीद सकते वो भी हम पर ही निर्भर होते है। हमे उन्हें दीवाली पर कपड़ा और मिठाई देना चाहिये। दिवाली के 2 दिन पहले धनतेरस आता है। ऐसा माना जाता है कि धनतेरस के दिन कुछ ना कुछ खरीदना चाहिए। कुछ लोग बर्तन खरीदते हैं तो कुछ लोग सोना चांदी के जेवर। दिवाली में माता लक्ष्मी की पूजा की जाती है। दिवाली में बच्चों में अलग सा उत्साह होता है।
बच्चे घर में ही छोटा सा मिटटी का घर बनाते हैं। और मिट्टी के ही छोटे-छोटे बर्तन भी बनाते हैं। लड़कियां इस दिन घर के आंगन में रंगोली बनाते हैं। पर वर्तमान की दिवाली पहले की दिवाली से बहुत अलग हो गया है। पहले की दिवाली में हम दीपक जलाते थे। और यह दीपक मिट्टी के बने होते थे जो कुम्हार वर्ग के लोगों द्वारा बनाया जाता है जो काफी गरीब होते हैं । यह मिट्टी के दीये ना खरीद कर आज हम चाइनीज इलेक्ट्रॉनिक लाइट का प्रयोग करने लगे हैं। जिसके कारण कुम्हारों द्वारा बनाए गए दियो का बिक्री नहीं हो पाता है और उनका पूरा मेहनत बेकार चला जाता है।
हमें हमेशा इनसे ही दिये खरीदने चाहिए हमें चाइनीज लाइट का प्रयोग नहीं करना चाहिए। और दूसरी बात हमें पटाखों का ज्यादा प्रयोग नहीं करना चाहिए। प्रत्येक वर्ष दिवाली के बाद हमें भारी प्रदूषण का सामना करना पड़ता है। कई राज्यों में पटाखों पर प्रतिबंध लगाया गया है पर फिर भी लोग पटाखों का प्रयोग करते हैं। हमें ऐसा नहीं करना चाहिए। अगर खुशी मनाना ही है तो उन पटाखों के पैसे से गरीबों के लिए कुछ खुशियां खरीद ले। जिससे उनकी दिवाली भी खुशियों के साथ मन सके।
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भूमिका:- दीपावली दीपो का त्यौहार है। इस प्रकाश पर्व के अवसर पर हर जगह डिपो कि कतारे सजी रहती है। जिस कारण यह पावन पर्व दीपावली के नाम से प्रसिद्ध है। यह पर्व स्वच्छता का प्रतिक है। इसे कार्तिक महीने कि अमावस्या कि रात हर वर्ष आनंद और उल्लास के साथ मनाया जाता है। इसे हिन्दुओ के अतिरिक्त अन्य धर्म के लोग भी मनाते है।
धार्मिक मान्यताएं:- दीपावली मनाये जाने के पीछे कई पौराणिक मान्यताएं प्रचलित है, सर्वाधिक महत्वपूर्ण मान्यता का सम्बन्ध भगवान श्रीराम से है। ऐसा कहा जाता है। कि श्रीराम , सीता और लक्ष्मण के वनवास गमन के बाद चौदह वर्षो तक अयोध्या में दुःख और अवसाद छाया रहा चौदह वर्षो के बाद जब ये तीनो अयोध्या लौटे तब अयोध्यावासियों ने उनके स्वागत में प्रसन्नता और उमंग के साथ घर-घर घी के दिए जलाये तब से दीपावली का त्यौहार मनाया जाने लगा। एक अन्य मान्यता के अनुसार इस रात धन कि देवी लक्ष्मी पृथ्वी पर घुमती है। और लोगो को धनी होने का वरदान देती है। अतः लोग अपने-अपने घरो को साफ-सुथरा और सज-धजकर दीपावली मनाते है, और धन कि देवी को रिझाने का प्रयास करते है।
आयोजन एवं वैज्ञानिक तथ्य:- वर्षाऋतू के बाद यह पर्व आता है। लोग अपने-अपने घरो और दुकानों कि सफाई रंगाई-पुताई और सजावट करते है। अपने आस-पड़ोस कि सफाई पर विशेष ध्यान दिया जाता है। फलतः वर्षाऋतू में उत्पन्न हुए मच्छरों और हानिकारक कितो कि समाप्ति हो जाती है। दीपावली कि रात बच्चे नये-नये कपडे पहनकर और पटाखे तथा विभिन्न प्रकार कि फुलझडियो से आतशबाजी कर प्रफुल्लित होते है। शाम से ही घरो को मोमबतियो दियो और विद्युत् बल्बों से प्रकाशित कर दिया जाता है। इस दीप-ज्वाला में विभिन्न किट पतंगे जलकर भस्म हो जाते है। रात्रि में लक्ष्मी और गणेश कि पूजा कि जाती है। और मिठाइयाँ खायी और खिलाई जाती है।
उपसंहार:- यह प्रकाश पर्व हमारे भीतर नयी चेतना उत्साह और आनंद का समावेश करता है। इस पर्व को सावधानी के साथ मनाया जाना चाहिए। ताकि कोई दुर्घटना न हो खासकर पटाखे फुलझड़ियाँ जलाते समय बच्चो पर विशेष ध्यान रखने कि जरुरत होती है। अन्यथा उनके हाथ-पैर आँख-नाक आदि जल सकते है।
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